Tuesday 9 May 2017

पाएं आयुर्वेद का एक ऐसा अनोखा नुस्खा ,जो आपको देगा शेरो जैसी ताकत और दूसरी १०० बिमारियों से मुक्ति

पाएं आयुर्वेद का एक ऐसा अनोखा नुस्खा ,जो आपको देगा शेरो जैसी ताकत और दूसरी १०० बिमारियों से मुक्ति

 स्वर्ण भस्म (Swarna Bhasma) आयुर्वेद में 1000 वर्षो से प्रयोग कर रहे हैं :
·         स्वर्ण भस्म को आयुर्वेद में हजारों सालों से दवाई के रूप में प्रयोग किया जा रहा है आयुर्वेद में स्वर्ण भस्म का अपना एक विशेष स्थान है। यह शरीर में ताक़त देने के साथ साथ मानसिक शक्ति में सुधार करने वाली औषधी कहलाती है। यह हृदय (Heart)और मस्तिष्क (Mind) को विशेष रूप से ताक़त प्रदान करती है। आयुर्वेद में हृदय रोगों और मस्तिष्क की निर्बलता जैसे रोगों में स्वर्ण भस्म को सर्वोत्तम माना गया है।
 स्वर्ण भस्म कैसे बनायी जाती है ?
·         स्वर्ण को आभूषण बनाने के साथ साथ औषधी की तरह भी प्रयोग किया जाता रहा हैं। आयुर्वेद में स्वर्ण जैसी मूल्यवान धातु की रासयनिक विधि से भस्म बनाई जाती है जो की सोने की ही तरह बहुत मूल्यवान है। सोने की भस्म को स्वर्ण भस्म कहते हैं।
·         स्वर्ण भस्म को आयुर्वेद (रसतरंगिणी) में बताये विस्तृत विवरण अनुसार ही बनाया जाता है। स्वर्ण भस्म को बनाने के लिए शुद्ध सोने को शोधन और मारण प्रक्रिया से गुजारा जाता है तब कही जा कर स्वर्ण भस्म बनती है
·         स्वर्ण के शोधन के लिए : तिल तेल, तक्र, कांजी, गो मूत्र और कुल्थी के काढ़े का प्रयोग किया जाता है।
·         स्वर्ण के मारण के लिए : पारद, गंधक अथवा मल्ल, कचनार और तुलसी को मर्दन के लिए प्रयोग किया जाता है।


 स्वर्ण भस्म में सोने की कितनी मात्रा होती है ?
·         सोने को जब विभिन्न रासायनिक प्रक्रिया से गुजारा जाता है तो स्वर्ण की भस्म बनती है इसमें सोना बहुत ही सूक्ष्म रूप में (नैनो मीटर 10-9) विभक्त होता है। इसके अतिरिक्त इसके शोधन और मारण में बहुत सी वनस्पतियाँ का भी प्रयोग किया जाता हैं। जिस कारणों से स्वर्ण भस्म शरीर की कोशिकायों में सरलता से प्रवेश कर जाती हैं और बहुत से रोगों में लाभ भी देती है क्योंकि वनस्पतियाँ के गुण धर्म मिलने का बाद यह शरीर का हिस्सा बन जाती हैं।
·         चरक, शुश्रुत, कश्यप सभी ने स्वर्ण भस्म के लिए अत्यंत हितकर बताया है। छोटे बच्चों को स्वर्ण प्राशन , Swarna Bindu Prashana कराने की भी परम्परा रही है जो की आज भी जारी है। महाराष्ट्र, गोवा, कर्णाटक में नवजात शिशु से लेकर 16 वर्ष की आयु के बच्चों को स्वर्ण का प्राशन कराया जाता है।

·         स्वर्ण भस्म शरीर में क्या काम करता है ?

    • स्वर्ण भस्म को बल (शारीरिक, मानसिक, यौन) बढ़ाने के लिए एक टॉनिक की तरह दिया जाता रहा है। यह रसायन, बल्य, ओजवर्धक, और जीर्ण व्याधि को दूर करने में उपयोगी है। स्वर्ण भस्म का सेवन पुराने रोगों को दूर करता है। यह बुखार, खांसी, दमा, मूत्र विकार, अनिद्रा, कमजोर पाचन , मांसपेशियों की कमजोरी, तपेदिक(टी बी), प्रमेह , रक्ताल्पता , सूजन , अपस्मार, त्वचा रोग, सामान्य दुर्बलता , जैसे  अनेक रोगों में उपयोगी है।

o    स्वर्ण भस्म एक स्वस्थ विकल्प है जोकि आप को यों शक्ति प्रदान करता है इसका आयुर्वेदिक चिकित्सा में सेक्स समस्यों के इलाज के लियें सर्वोपरी स्थान है तथा यह बेहद कमजोर व्यक्ति को भी मज़बूत सेक्स शक्ति प्रदान करता है. यह विशेष रूप से सेक्स कमजोरी और लिंग में बिलकुल भी उतेजना आने कि समस्या में बहुत अधिक लाभदायक होता है स्वर्ण भस्म भी कार्डियक टॉनिक है जो रक्त शुद्धता और दिल को मजबूत करता है. यह बुद्धि में सुधार, यौन शक्ति बढ़ाने के लिए, और पेट, त्वचा और गुर्दे की गतिविधि को उत्तेजित करता है।
o    यह एक टॉनिक है जिसका सेवन यौन शक्ति को बढ़ाता है। स्वर्ण भस्म शरीर से खून की कमी को दूर करता है, पित्त की अधिकता को कम करता है, हृदय और मस्तिष्क को बल देता है और पुराने रोगों को नष्ट करता है।
o    स्वर्ण भस्म का वृद्धावस्था में प्रयोग शरीर के सभी अंगों को ताकत देता है।
o    स्वर्ण भस्म आयुष्य है और बुढ़ापे को दूर करती है। यह भय, शोक, चिंता, मानसिक क्षोभ के कारण हुई वातिक दुर्बलता  को दूर करती है। बुढ़ापे के प्रभाव को दूर करने के लिए स्वर्ण भस्म को मकरध्वज के साथ दिया जाता है।
o    हृदय की दुर्बलता में स्वर्ण भस्म का सेवन आंवले के रस अथवा आंवले और अर्जुन की छाल के काढ़े अथवा मक्खन दूध के साथ किया जाता है।
o    स्वर्ण भस्म से बनी दवाएं पुराने अतिसार, ग्रहणी , खून की कमी में बहुत लाभदायक है। शरीर में बहुत तेज बुखार और संक्रामक ज्वरों के बाद होने वाली विकृति को इसके सेवन से नष्ट किया जा सकता है। यदि शरीर में किसी भी प्रकार का विष चला गया हो तो स्वर्ण भस्म को को मधु अथवा आंवले के साथ दिया जाना चाहिए।
प्रमुख गुण : बुद्धिवर्धक, वीर्यवर्धक, ओजवर्धक,
प्रमुख उपयोग: यौन दुर्बलता, धातुक्षीणता, नपुंसकता, प्रमेह, स्नायु दुर्बलता,यक्ष्मा/तपेदिक, जीर्ण ज्वर, जीर्ण कास-श्वास, मस्तिष्कदुर्बलता,उन्माद,त्रिदोषज रोग, पित्त रोग
स्वर्ण भस्म के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
स्वर्ण भस्म, स्वाद में यह मधुर, तिक्त, कषाय , गुण में लघु और स्निग्ध है। बहुत से लोग समझते हैं की स्वर्ण भस्म स्वभाव से गर्म / उष्ण है। लेकिन यह सत्य नहीं है।
स्वभाव से स्वर्ण भस्म शीतल है और मधुर विपाक है।
विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है
मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं। रस: मधुर, तिक्त, कषाय
 गुण : लघु, स्निग्ध
वीर्य : शीत
विपाक मधुर
कर्म:
वाजीकारक
वीर्यवर्धक
हृदय
रसायन
कान्तिकारक
आयुषकर
मेद्य
विष नाशना
 स्वर्ण भस्म के लाभ/फ़ायदे :
1.   स्वर्ण की भस्म, स्निग्ध, मेद्य, विषविकारहर और उत्तम वृष्य है। यह तपेदिक, उन्माद शिजोफ्रेनिया, मस्तिष्क की कमजोरी, शारीरिक बल की कमी में विशेष लाभप्रद है। आयुर्वेद में इसे शरीर के सभी रोगों को नष्ट करने वाली औषधि बताया गया है।
2.   स्वर्ण भस्म बुद्धि, मेधा, स्मरण शक्ति को पुष्ट करती है। यह शीतल, सुखदायक, तथा त्रिदोष के कारण उत्पन्न रोगों को नष्ट करती है। यह रुचिकारक, अग्निदीपक, वात पीड़ा शामक और विषहर है।
3.   यह खून की कमी को दूर करती है और शरीर में खून की कमी से होने वाले प्रभावों को नष्ट करती है।
4.   यह शरीर में हार्मोनल संतुलन करती है
5.   यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की कोशिकाओं के दोषों को दूर करती है।
6.   यह शरीर की सहज शरीर प्रतिक्रियाओं में सुधार लाती है।
7.   यह शरीर से दूषित पदार्थों को दूर करती है।
8.   यह प्रक्रियाओं को उत्तेजित करती है।
9.   यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को ठीक करती है।
10.            यह एनीमिया और जीर्ण ज्वर के इलाज में उत्कृष्ट है।
11.            यह त्वचा की रंगत में सुधार लाती है।
12.            पुराने रोगों में इसका सेवन विशेष लाभप्रद है।
13.            यह क्षय रोग के इलाज के लिए उत्कृष्ट है।
14.            यह यौन शक्ति को बढ़ाती है।
15.            यह एंटीएजिंग है और बुढ़ापा दूर रखती है।
16.            यह झुर्रियों, त्वचा के ढीलेपन, सुस्ती, दुर्बलता, थकान , आदि में फायेमंद है।
17.            यह जोश, ऊर्जा और शक्ति को बनाए रखने में अत्यधिक प्रभावी है।
 स्वर्ण भस्म के चिकित्सीय उपयोग :
1. अवसाद
2. अस्थमा, श्वास, कास
3. अस्थिक्षय, अस्थि शोथ, अस्थि विकृति
4. असाध्य रोग
5. अरुचि
6. कृमि रोग
7. बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करने के लिए
8. विष का प्रभाव
9. तंत्रिका तंत्र के रोग
10. मनोवैज्ञानिक विकार, उन्माद, शिजोफ्रेनिया
11. मिर्गी
12. शरीर में कमजोरी कम करने के लिए
13. रुमेटी गठिया
14. यौन दुर्बलता, वीर्य की कमी, इरेक्टाइल डिसफंक्शन
15. यक्ष्मा / तपेदिक
 सेवन विधि और मात्रा :
1.   स्वर्ण भस्म को बहुत ही कम मात्रा में चिकित्सक की देख-रेख में लिया जाना चाहिए।
2.   सेवन की मात्रा 15-30 मिली ग्राम, दिन में दो बार है।

3.   इसे दूध, शहद, घी, आंवले के चूर्ण, वच के चूर्ण या रोग के अनुसार बताये अनुपान के साथ लेना चाहिए।

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